किसी जंगल में जंगली भेड़ का एक बड़ा झूंड रहता था. उसका सरदार था चीकू भेड़
वह स्वभाव से काफी झगड़ालू था| उसका हर दुसरे दिन अपने आस- पास के दूसरे भेड़ो के झूंड से किसी न किसी बात पर लडा़ई होती रहती थी. वह कभी भी अपनी गलती नही मानता था
और अपनी ताकत साबित करने को अपने झूंड के भेड़ो से कहकर दूसरे भेड़ो की पीटाई करवा देता था. इससे आसपास के सारे भेड़ परेशान रहते थें. एक दिन चीकू भेड़ की लड़ाई दुसरे झूंड के भेड़ के सरदार से हो गई, उसे पिटवाने के लिए उसने अपने साथी भेड़ो को आदेश दिया. साथी भेड़ उसके आदत से पहले ही परेशान थे, इसलिए उनहोंने यह कहकर यह बात टाल दिया कि – सरदार पास वाले भेड़ो की संख्या और ताकत हमसे काफी अधिक है, इसी कारण उनसे लड़ाई नहीं कर सकते
चीकू भेड़ को इस बात पर काफी गुस्सा आया. उसने फिर अपने बेटों को आदेश दिया किन्तु बेटों ने कहा कि – पिताजी हम अभी काफी छोटे है और इतने सक्षम नहीं की उनका मुकाबला कर सके. चीकू सरदार का गुस्सा और बढ़ गया| वह अपने आप को ठगा हुआ महसूस कर रहा था. उसने मन ही मन सोचा कि एक दिन इन सब से अपने अपमान का बदला लूगां
यूँ ही कुछ देर चलते- चलते कुछ दूर पर शेर सिंह दिखा, जो शिकार करके अपनी घर की तरफ जा रहा था. उसे जाते देख चीकू के मन में उपाय सुझा- जब अपने दोस्त काम न आए तो ऐसे वक्त में दुश्मनों को अपना दोस्त बना लेना चाहिए. ऐसा सोचते हुए, वह शेर सिंह के पास पहुंचा और कहा कि – मैं आपसे दोस्ती करने आया हूँ. यह सुनते ही शेर सिंह ने कहा- मूर्ख, तुम्हारे जैसे जीव सिर्फ मेरे भोजन योग्य हो, दोस्ती योग्य नहीं| इसी बात पर चीकू ने कहा- राजन, मैं यह बात जानता हूँ, किन्तु आप सोचो, अगर आपको शिकार करने कही जाना न पडे़ और शिकार स्वयं आपके पास चलकर आऐ तो?
दूसरे झुंड के भेड़ रोजाना अपनी भोजन की तालाश में जंगल में निकलते हैं, मैं रोजाना आपको उनकी पता बता दूंगा और आप उन्हें अपना भोजन बना लेना. शेर ने सोचा यह तो पेट भरने का काफी आसान उपाय है, और उसने चीकू भेड़ से दोस्ती कर ली. चीकू उसे प्रतिदिन अपने प्रतिद्वंद्वीयों का पता बताता और शेर सिंह आकर उसे हजम कर जाता. धीरे- धीरे करके चीकू के सारे प्रतिद्वंद्वी खत्म हो गऐ
शेर सिंह को मुफ्त की खाने की आदत लग गई थी. उसने चीकू से और भेड़ का पता पूछा- चीकू ने कहा- महाराज अब केवल मेरे साथी दोस्त बच गऐ हैं, उन्हें छोड़ दिजिए. शेर ने कहा- अगर मुझे उनका पता न मिला तो मैं तुम्हें ही खा जाऊँगा
अपनी जान बचाने के लिए चीकू ने अपने दोस्तों का भी पता बता दिया. धीरे -धीरे करके शेर सिंह ने ना केवल चीकू के दोस्तों को बल्कि उसके बेटे और पत्नी को भी चट कर दिया. कुछ दिन बाद शेर सिंह ने और भेड़ो का पता पुछा- चीकू ने हाथ जोड़ते हुए कहा- महाराज जंगल में अब एक भी भेड़ न बचे है केवल मैं बचा हूँ,और मैं तो आपका मित्र भी हूँ.
अतः मुझे जाने दे| शेर सिंह ने हँसते हुए कहा- तुम जैसे छोटे जीव मेरे दोस्त कैसे? इतना कहते हुए उसने चीकू भेड़ पर भी झपट्टा मारा और उसे भी खा गया.
सीख- जैसी करनी वैसी भरनी. अतः हमे कभी किसी का बुरा नहीं सोचना चाहिए वरना हमें भी उसका परिणाम भुगताना पर सकता है.