फ़ेसबुक अब मेटावर्स

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फ़ेसबुक अब मेटावर्स

 फ़ेसबुक का नाम अब ‘मेटा’ हो गया है। अपना कार्पोरेट नाम बदलने के बाद अब यह कंपनी सोशल-मीडिया से आगे ‘वर्चुअल रियलिटी’ की ओर भी कदम बढ़ायेगी। हालांकि इस ‘रिब्रांडिंग’ के तहत केवल ‘पैरेंट-कंपनी’ फ़ेसबुक का नाम ही बदलेगा, उसके अंतर्गत आने वाले विभिन्न प्लेटफ़ॉर्म्स यानी इंस्टाग्राम, वाट्स एप या फिर फ़ेसबुक का नाम यथावत् रहेगा।


 कंपनी के सीईओ मार्क ज़ुकरबर्ग का कहना है कि फ़ेसबुक का यह नया नाम ‘मेटावर्स’ प्लान का हिस्सा है। जिसके मायने एक उस ऑनलाइन दुनिया से है जिसमें लोग आपस में संपर्क तो स्थापित कर ही सकते हैं, इसके अतिरिक्त गेम खेल सकते हैं और मिलकर कोई काम भी कर सकते हैं। उनका कहना है कि कंपनी के वर्तमान फीचर्स उन उद्देश्यों के लिये नाकाफ़ी हैं, जो अब यह कंपनी एक नये नाम के साथ पूरा करना चाहती है।

एक ‘वर्चुअल कांफ्रेंस’ में उन्होंने कहा कि अब समय आ गया है कि हम जो भी करने जा रहे हैं वह एक नये ब्रांड के तहत हो। ताकि लोगों को पता चल सके कि हम कौन हैं, और क्या कर रहे हैं। ज़ुकरबर्ग ने कहा कि वे इस कंपनी को दो हिस्सों में देखना चाहते हैं, एक फैमिली एप्स और दूसरा भविष्योन्मुखी प्लेटफ़ॉर्म्स पर काम करना।


 माना जा रहा है कि इस तरह ‘रिब्रांडिंग’ के ज़रिये लोगों के बीच फ़ेसबुक की एक नई इमेज बनेगी। और इस प्रकार पिछले कुछ समय से तरह-तरह के विवादों के चलते कंपनी की धूमिल हुई साख सुधरेगी। गौरतलब है कि फ़ेसबुक ने यह कदम तब उठाया है, जब उसकी एक पूर्व कर्मचारी फ्रांसिस हॉगन द्वारा लीक किये गये दस्तावेज़ों से कुछ आपत्तिजनक बात सामने आईं।

जिसमें सबसे ताज़ा जानकारी वाशिंगटन-पोस्ट की वह रिपोर्ट देती है जो बताती है कि फ़ेसबुक कोरोनाकाल में टीके से संबंधित गलत सूचना-प्रसारण को रोक पाने में नाकाम रही। फ़ेसबुक के इन तमाम महत्वपूर्ण दस्तावेज़ों का सिलसिलेवार ढंग से खुलासा करने वाली उसकी पूर्व कर्मी का कहना है कि ये कंपनी सुरक्षा-मानकों को ताक पर रखकर सिर्फ़ मोटे मुनाफ़े के लिये काम कर रही है। फ़ेसबुक पर यह भी आरोप लगा कि वह अपने प्लेटफ़ॉर्म्स के ज़रिये नफ़रत फैलने से रोकने में नाकाम रहा। इसके अलावा फ़ेसबुक ने अपना वह सर्वेक्षण कार्य भी बंद कर दिया, जिसके तहत पता चलता है कि इंस्टाग्राम से किशोरों की मानसिक सेहत पर कितना गलत असर पड़ता है।

हालांकि इन सब आरोपों के बारे में ज़ुकरबर्ग का कहना है कि सिर्फ़ कंपनी को बदनाम करने के लिये ये दस्तावेज़ चुन-चुन कर लीक किये गये हैं। फिर भी ज़ाहिर है कि अब ‘रिब्रांडिंग’ के ज़रिये कंपनी एक नये अवतार में आकर इन नकारात्मक बातों से निज़ात पाना चाहती है। साथ ही सोशल-मीडिया से परे भी अपनी पहुंच बनाना चाहती है। ध्यातव्य है कि ‘मेटा’ शब्द ग्रीक से आया है, जिसका अर्थ है — बियॉन्ड, यानी आगे या उससे परे।


 हालांकि ‘मेटावर्स’ अभी अस्तित्व में नहीं है। मार्क ज़ुकरबर्ग इसे लंबी अवधि की योजना बताते हैं। उनका इरादा इस नये ब्रांड के साथ दिसंबर तक शेयर-बाजार में जाने का है। फ़ेसबुक का यह प्रयास कितना सफल होगा, इसका ज़वाब आने वाला वक़्त ही दे पायेगा। यहां प्रासंगिक रूप से उल्लेखनीय है कि सन् २०१५ में गूगल ने भी नाम बदलकर ‘अल्फ़ाबेट’ कर लिया, और इस तरह अपनी ‘रिब्रांडिंग’ की कोशिश की थी। पर जैसा कि साफ दिखता है, आज भी उसे गूगल के नाम से ही जाना जाता है। इसके बावज़ूद यदि फ़ेसबुक का यह प्रयोग सफल रहता है तो यह उसके लिये एक बड़ी कामयाबी होगी। और कंपनी के सीईओ मार्क ज़ुकरबर्ग इसे लेकर प्रतिबद्ध भी दिखते हैं। यही नहीं, कुछ लोग ‘मेटावर्स’ में इंटरनेट का भविष्य भी देखते हैं।


 सो, उम्मीद की जानी चाहिये कि अब हम ‘वर्चुअल दुनिया’ में अपने दोस्तों-परिजनों से संपर्क स्थापित करने के अलावा खेल भी सकेंगे, और उनके साथ ‘मीटिंग-कॉन्सर्ट’ आदि कार्यक्षेत्र संबंधित क्रियाकलाप भी कर सकेंगे। इसमें एक ‘हैडसेट’ के ज़रिये ही यह सब संभव हो सकेगा, इसीलिये इसे ‘वर्चुअल हैडसेट’ कहा जाता है। जिसके द्वारा हम ‘वर्चुअल-वर्ल्ड’ में हर तरह के डिजिटल परिवेश में अपनी जगह बना सकते हैं। 

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