सरकारी नीतियों के बरक्स देश में कोरोना की रफ़्तार खतरनाक तरीके से बढ़ती जा रही है, जबकि वक्त के साथ हम भी इसके प्रति बेपरवाह होते गये हैं। देश में इससे अब तक कुल २८००० से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। वहीं आईएमए यानी इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने अब कोरोना के सामुदायिक प्रसार पर भी मुहर लगा दी है, जिससे इस आपातकाल की आशंकायें और भी बढ़ जाती है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, बीचे २४ घंटों में कोरोना वायरस के ३८९०२ नए मामले सामने आए हैं, जबकि ५४३ लोगों की मौत हुई है। देश में कोरोना वायरस के कुल मामलों की संख्या बढ़कर १० लाख ७७ हजार ६१८ हो गई है। इसमें से ३ लाख ७३ हजार ३७९ एक्टिव मामले हैं, जबकि ६ लाख ७७ हजार ४२३ लोग स्वस्थ हो चुके हैं। देश में अब तक कुल २८००० से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। गनीमत यही है कि इसकी ‘रिकवरी’ दर कुछ राज्यों में काफ़ी बेहतर है। हालाँकि कोरोना के पैंतीस हजार से अधिक मामले रोज आ रहे हैं, जबकि इससे मरने वालों की संख्या सात सौ के आसपास है।
कहा गया कि इस महामारी से निपटने को ज्यादा से ज्यादा जांच अपरिहार्य है। पर हम इसमें काफ़ी पीछे हैं अभी। आज अमेरिका एक दिन में १३८००० कोविड-१९ टेस्ट कर रहा है, रूस १६७०००,इज़राइल १५०००० ,ब्रिटेन १८६०००,डेनमार्क २२२००० और यूएई ४४१०००; जबकि हम अभी प्रतिदिन दस हज़ार टेस्ट भी नहीं कर पा रहे। हालाँकि कोरोनासंकट के मामले में भारत विश्व में दूसरे स्थान पर आ चुका है…
कहना न होगा कि भारत में कोरोना के इस स्तर तक पहुंचने में ‘परदेसी कामगारों’ की अहम भूमिका रही है, और जिसके लिये बहुत हद तक सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार हैं। वस्तुतः हमारी अर्थव्यवस्था इन मजदूरों पर ही टिकी है। दुनिया में शायद ही और कहीं कोरोनासंकट के समानांतर ऐसा प्रवासी संकट आ पड़ा हो। पर यदि आश्वासन के मुताबिक़ उन्हें भोजन और सुरक्षा की व्यवस्था प्रदान करते हुये यथास्थान रोके रक्खा गया होता; अथवा कुछ विलंब से घोषित किये गये लॉकडाउन के शुरुआत में ही उनको घर पहुँचाने की वही सहूलियतें मिलतीं, जो अन्यथा बाद में देनी ही पड़ीं, तो स्थिति की ऐसी भयावहता से बचा जा सकता था। फिर जिस तरह यात्रा के लिये टिकट आदि की धांधली और कालाबाजारी हुई, भीड़ और अफरातफरी मची, उससे समस्या और भी गहरी हुई। और अब यह हाथ से निकलती नज़र आ रही है।
इन कुव्यवस्थाओं के चलते जाने-अनजाने ये ‘अपने’ ही देश में कोरोना के सबसे प्रभावी वाहक बन गये। आज कोरोना के मामलों में हम विश्व में दूसरे सबसे परेशान मुल्क हो चुके हैं। हालांकि न्यूजीलैंड, थाईलैंड, वियतनाम, द. कोरिया और खुद चीन जैसे तमाम देशों ने कोरोना पर काबू पाकर जता दिया है कि यह अजेय नहीं। हम भी अभी बहुत कुछ करने में सक्षमहैं। सोशल-डिस्टेंसिंग इसके लिये एक सबसे कारगर उपाय है..
आईएमए अध्यक्ष के मुताबिक़ इस बीमारी को रोकने के लिए केवल दो विकल्प हैं। पहला यह कि ७० फीसदी आबादी इस बीमारी से संक्रमित हो, और उनके अंदर इससे लड़ने की इम्यूनिटी विकसित हो जाए। और दूसरा, कि इसकी वैक्सीन तैयार हो जाए