बच्चों को कैसे दिलाएँ तनाव से आज़ादी

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हम सब जानते हैं कि  आधुनिक  जीवन- शैली में  तनाव  सामान्य  परेशानी  बन गया है ।तनाव  का  शिकार  केवल  बड़े  ही  नहीं  बल्कि  बच्चे भी बनते हैं । बच्चे  बडों की तरह  स्वयं  तनाव  से  आज़ादी  पाने में  असमर्थ  होते हैं ।इसलिए  तनाव  उन पर गंभीर  असर  दिखाता है ।बच्चों  को  तनाव  मुक्त  रखने  का काम  उनके  माता-पिता  ही कर सकते हैं ।


बच्चों में तनाव के कारण 
बच्चे  तनाव  का शिकार  कई कारणों  से  हो सकते हैं;जैसे  कि माता-पिता  के  स्नेह  या सान्निध्य  का अभाव,  उनकी  उपेक्षा या भेदभावपूर्ण  रवैया,  पढ़ाई – लिखाई को लेकर  अनावश्यक  दबाव,  खेल-कूद संबंधी  प्रतिस्पर्धाएँ ,कंप्यूटर,  टी वी  या मोबाइल  फोन  के प्रयोग की अति,कोई  रोग ,शारीरिक  अपंगता,उचित  मार्गदर्शन की कमी, अकेलापन, कठोर  पारिवारिक  अनुशासन  आदि ।


मानसिक  तनाव  के  दुष्परिणाम 
मानसिक  तनाव  बच्चों  के  वर्तमान  को ही नहीं बल्कि  भविष्य  को भी  प्रभावित  करता है ।इसके  कारण  बच्चों  में  कई तरह की मानसिक  विकृतियाँ पनप सकती हैं,जैसे   भय, क्रोध,  घृणा,  चिड़चिड़ापन , हीन भावना, संकोच, आदि ।बच्चा  आत्मविश्वास  खो सकता है  व उसमें  नकारात्मक  सोच  पनप सकती है ।तनाव  से उत्पन्न  विकृतियाँ उसे अंदर  से दुर्बल  बनाती हैं ।वह बाहर  से  सामान्य  दिखता है  मगर  अंदर  से असामान्य  जीवन  जीता है । उसकी  उम्र  जरूर  बढती है  मगर  उसके  अनुरूप  जीवन  में  उन्नति  नहीं  मिलती । भावी जीवन में  अक्सर  पिछड़ेपन का शिकार हो जाता है ।


कैसे  दिलाएँ  तनाव से  आज़ादी 
बच्चों  को तनाव  से आज़ाद रखना  कोई  बड़ी  मशक्कत  का काम  नहीं है । उसके  लिए  बस उन पर निरंतर  थोड़ा  ध्यान  देने  की जरूरत  होती है ।जैसे  – 
–  बच्चों  के  साथ  खेलें,  उनसे  बातें करें । उन्हें  जरा  जरा – सी बातों  पर डाँटे नहीं ,बल्कि  कोई  गलती  होने पर  प्यार  से  समझाएँ।
– उन्हें  अपने  हमउम्र बच्चों के  साथ  खुलकर खेलने का अवसर  दें।प्रेम  से रहने एवं  मिलनसारिता की सीख दें।
– उनको  अपनी  दोस्ती व अपनेपन  का एहसास  दें। खूब  हँसाएँ तथा साथ ही  अच्छी  सीख दें।- कोई  मानसिक  विकृति  दिखे तो अविलंब ध्यान  दें  व पूर्णतः  निदान  करें ।
– मोबाइल  ,कंप्यूटर,  टी वी  आदि को उनके  मन – मस्तिष्क  पर हावी  न होने दें ।
– बच्चों  को  बहुत  अधिक  काबिल बनाने के चक्कर में  उन पर  पढ़ाई ,खेल-कूद  या अन्य  प्रकार का अनावश्यक  दबाव  कभी  न बनाएँ ।उन्हें  उनकी  उम्र  को ध्यान  में  रखते हुए  बढ़ने, पढ़ने और उन्नति  करने  दें, खुद   माली या मार्गदर्शक 

बनकर  हमेशा  साथ  खड़े रहें ।

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