बच्चों के समग्र विकास में माता-पिता और शिक्षकों की भूमिका
“अपने बच्चों को एक संरक्षक वृक्ष की तरह बनाओ, न कि एक फूलदान के पेड़ की तरह“
जिस तरह से एक वृक्ष वन में कई परिस्थितियों में भी अपनी जड़ों की टहनियों को फैलाता है। उसे देखभाल की जरूरत नहीं होती है, एक दिन यह बढ़ेगा और कई लोगों को अपने सायें में पनाह देगा। जिस तरह यह वृक्ष हर स्थिति में फूलता-फैलता है। उसी तरह माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को उस पेड़ की तरह बनाएं, उन्हें खुद का विस्तार करने दें और उन्हें अपने संघर्ष से आगे बढ़ने दें।
यौवन वह अवस्था है जब लड़के बचपन की उम्र को छोड़ कर धीरे-धीरे वयस्कता की ओर बढ़ते हैं। इस उम्र के अधिकांश युवाओं में एक छोटे बच्चे के लिए जिज्ञासा और उत्साह और वयस्कों के ज्ञान का उत्साह होता है। युवा पीढ़ी कल की आशा है। युवा देश के सबसे ऊर्जावान हिस्से में से एक है और इसलिए उनसे बहुत उम्मीदें हैं। सही मानसिकता और क्षमता से युवा राष्ट्र के लिए वरदान साबित हो सकते हैं।
बच्चों के समग्र व्यक्तित्व का विकास:
हर बच्चा अपने माता-पिता की संतान है, उसके बाद अपने शिक्षक का छात्र भी है। वे हरवक्त बच्चों के सबसे करीब होते हैं और उन्हें बेहतर जानते हैं। शैक्षणिक शिक्षा बहुत आवश्यक है लेकिन, उसके साथ बच्चों के विकास के लिए खेल, कला और सांस्कृतिक गतिविधियाँ भी अधिक महत्वपूर्ण हैं, यह उनके सीखने की उम्र के तनाव को कम करने में बहुत मदद करता है। बच्चों में खेल गतिविधियाँ उत्पन्न करने की आवश्यकता है, लेकिन माता-पिता द्वारा डाला गया अनुचित दबाव बच्चों में खेल के प्रति घृणा को जन्म देता है। प्रतिस्पर्धी माता-पिता द्वारा बच्चों की लगातार तुलना और शर्मिंदा करने की प्रवृत्ति ने स्थिति को और खराब कर दिया है।
“पक्षी अपने बच्चों को कभी उड़ना नहीं सिखाते, सिर्फ उन्हें उड़ने में काबिल बनाते हैं”
बच्चों की रचनात्मकता को प्रोत्साहित करने के लिए नृत्य, संगीत, कला और अन्य गतिविधियाँ उत्कृष्ट विकल्प हैं। इस तरह वह अनुशासन, फोकस और टीम वर्क जैसे महत्वपूर्ण मूल्यों को सीखता है, इससे उसे किताबी दुनिया से बाहर आने और आत्म क्षमता को पहचानने में मदद मिलती है। केवल पढ़ाई में ही बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने के लिए माता-पिता के दबाव ने इन मनोरंजक गतिविधियों की उनकी प्रतिभा को दबा दिया है। इससे बच्चे दिशा से भटके है, और काफी तनाव में हैं।
बच्चों के सुप्त गुणों की पहचान :
ऐसी गतिविधियाँ जिनमें बच्चे आमतौर पर अधिक भाग लेना पसंद करते हैं, कुछ कार्यों को करने के लिए हठपूर्वक रुक सकते हैं। ऐसे गुणों को पहचानना शिक्षकों या माता-पिता की जिम्मेदारी होती है, उनके द्वारा पढ़ाई का बच्चों पर अत्यधिक दबाव डालने से उस क्षेत्र में भी उनका प्रदर्शन खराब हो सकता है, जिसमें वे स्वाभाविक रूप से निपुण होते हैं। साथ ही शिक्षकों, प्रशिक्षकों और बच्चों को सिर्फ किताबी ज्ञान से ही संतुष्ट नहीं होना चाहिए। तथाप़ी, कला और खेल के गुप्त गुणों को बढ़ावा देने के लिए नियमित प्रदर्शनों, अभ्यासों, और प्रतियोगितां आदि के आयोजन से वे राष्ट्रीय और राज्य स्तर के खिलाड़ी और कलाकार हो सकते हैं, इसपर भी ध्यान केंद्रीत कर देना चाहिए।
शिक्षको और माता –पिता की भूमिका –
आधुनिक काल में शिक्षा प्रणाली और माता-पिता की विफलताएँ दो सबसे बडे प्रश्न है। वैसेही, बच्चे की सीखने की अक्षमता और शैक्षणिक विफलता की पहचान करने में असमर्थता हैं। छात्रों और बच्चों पर बढ़ते दबाव के लिए सरकार की नीति भी जिम्मेदार है, क्योंकि, आठवीं तक बच्चा फेल ही नहीं होता है या नहीं किया जाता है। इससे बच्चों की शैक्षणिक गुणवत्ता पर असर पड़ता है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि दबाव का एक बड़ा हिस्सा माता-पिता से आता है। कुछ क्षेत्र इसके उदाहरण हैं जहां बच्चों को उनके माता-पिता द्वारा हाई स्कूल में विज्ञान और गणित लेने के लिए मजबूर किया जाता है, ताकि वे बाद में डॉक्टर या इंजीनियर बन सकें। बच्चों की वाणिज्य और कला में रुचि की पसंदगी से इंकार किया जाता है।
शिक्षक और पालकों के लिये बच्चों के पोषण के कुछ महत्वपूर्ण तरीकें बताए गए है, जो बच्चों के सुसंस्कारण के रूप मे उपयोगी साबित हो सकते है।
आईये जानिए ऐसे ही कुछ तरीकों के बारे मे।……..
A. माता-पिता का आत्मनिरीक्षण
B. बच्चों को प्रोत्साहित करें
C. बच्चों के सुप्त गुणों की पहचान
D. विशेषज्ञों की मदद लें
E. सफलता की कहानियों से प्रेरणा लें
अंतत: अगर संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास को सभी शिक्षा का लक्ष्य माना जाता है, तो बच्चों के व्यक्तित्व का मूल्यांकन उनकी क्षमता, बुद्धि, वैसेहि शौक, आदतों, दृष्टिकोण के साथ-साथ जीवन मूल्यों और शारीरिक गतिविधि की क्षमताओं के साथ किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त, बच्चों के स्वस्थ पोषण और मानसिक विकास के लिए एक सुरक्षित और खुशहाल पारिवारिक वातावरण की आवश्यकता होती है। भारत में शिक्षा और शिक्षकों का बच्चोपर डाला जाने वाला दबाव पारंपरिक तनाव का एक प्रमुख कारण है। माता-पिता द्वारा बच्चों पर अच्छा प्रदर्शन करने का असामान्य दबाव अन्य देशों के विपरीत अधिक रहा है, आजकल कुछ खेल भी एक उच्च कमाई वाले करियर के रूप में और ग्लैमर के साथ एक जरिया बन गए है, अधिकांश भारतीय माता-पिता ने इन क्षेत्रों में करियर के रूप में उनका ध्यान आकर्षित किया है। उससे बच्चों अतिरिक्त दबाव बढ़ता जा रहा है। इसलिए, शिक्षक और पालकों का यह आद्य कर्तव्य और जिम्मेदारी है कि, उन्हें अपनी पसंदीदा करियर, रुचि के अनुसार फूलने-फैलने दे। इससे वह अच्छा छात्र, उमेदि युवा और राष्ट्र का आधारस्तंभ बने।
इस वर्ष के बालक दिन की सभी बालकों और छात्रों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं! और कै.पंडित जवाहरलाल नेहरूजी के स्मृति में अभीष्टचिंतन!