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स्वतंत्रता संग्राम और आधुनिक समाज मे नारी का महत्त्व
नारी और स्वतंत्रता संग्राम
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन 1857-1947 तक भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के अंतिम उद्देश्य के साथ ऐतिहासिक घटनाओं की एक श्रृंखला थी । महिलाओं ने भारत के इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नारीयों का स्वतंत्रता संग्राम में अमुल्य योगदान था। उनमे रानी लक्ष्मीबाई, विजयालक्ष्मी पंडित, सरोजिनी नायडू, बेगम हजरत महल, वैसेही भिकाजी कामा और अरुणा आसिफ अली जैसी हस्तियां शामिल थी। हालांकि, उनके जीवन, संघर्ष और आंदोलन के योगदान को कभी भी उसी आंदोलन के पुरुषों के समान प्रमुखता के स्तर पर मान्यता नहीं दी जाती है। इसके अतिरिक्त, स्वतंत्रता आंदोलन पर चर्चा करते समय उनके नाम शायद ही कभी सुने जाते हैं, या संक्षेप में उनका उल्लेख किया जाता है।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी 1817 से ही शुरू हो गई थी। भीमा बाई होलकर ने ब्रिटिश कर्नल मैल्कम के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें गुरिल्ला युद्ध में हरा दिया। अंग्रेजों के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ कई महिलाएं इस आंदोलन में कूद पड़ी। बीसवीं शताब्दी के दौरान, कई महिलाओं ने सैन्य नेतृत्व, राजनीतिक नेतृत्व और सामाजिक सक्रियता के माध्यम से आंदोलन में योगदान देना जारी रखा। यूँ स्वतंत्रता संग्राम से ही महिला अबला से सबला बनने लगी और समाज मे अपनी पहचान बनाने लगी।
में नारी की परिस्थिति और नारी का सामाजिक कर्तव्य
नारी समाज को समृद्ध एवं प्रगतिशील बनाने में अपना अमूल्य योगदान देती हैं। आज नारी सामाजिक रूढीवादी सोच के बंधन से बाहर आ गई है। आधुनिकता के साथ कदम से कदम मिलाकर नारी गृहस्थी के साथ विविध कार्यों की जिम्मेदारी का निर्वहन कर रही है। नारी ने आज हर क्षेत्र में योगदान देकर घर, समाज और देश को समृद्ध किया है। चाहे वह राजीनीति हो, या फिल्म—कला, साहित्य जगत, और सेना, चिकित्सा, अनुसंधान इत्यादि क्षेत्रों में अपना परमच लहरा रही हैं। आधुनिक नारी कर्तव्यदक्ष होने के साथ अधिकारों के प्रति सजग है। नारी का सशक्तिकरण होना मानवजाति का सबल होना है, इसलिए समाज एवं सरकार को भी नारी के विकास के लिए अच्छी शिक्षा और समाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कमर कस लेनी चाहिए। नारी को अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहना चाहिए, परंतु अपनी गरिमा एवं मर्यादा का ध्यान रखते हुए अपनी स्वतंत्रता का अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए। निश्चित ही जब हर नारी की पहचान बनेगी तो एक स्वस्थ समाज का सपना साकार होगा। स्वतंत्रता संग्राम से प्रेरणा लेकर आज के दौर में स्वतंत्रता के इस अमृत महोत्सवी वर्षगाँठ तक सशक्तिकरण का सफर उल्लेखनीय है, और भविष्य में भी महिलाओं का सशक्तीकरण जारी रहने की आशा है।
महिला सशक्तिकरण के उपलक्ष्य में कुछ पंक्तियाँ…….
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जीवन का मतलब नारी है।
जन्म–मृत्यु की हर कड़ियों में,
रहती इक अविचल नारी ही है।
कर्मों की हर विधा जहाँ है,
उसी कर्म की कड़ी भी तो नारी है।
जहां भरा हो आंचल ममता में,
वो गहरा सागर भी तो नारी है।
प्रेम की अविरत धार बहे है,
ऐसी निश्चल गंगा भी तो नारी है।
दया धरम की जो जननी है,
ऐसी परछाई को भी रखती नारी है।
सेवाभाव रखा जो मन में,
उस सेवा का भाव भी तो नारी है।
………… जीवन का मतलब ही नारी है।
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नीति निर्माण
महिलाओं की समानता और संप्रभुता और उनकी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य स्थिति में वृद्धि अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं। वास्तव में, सातत्यपूर्ण विकास को पूरा करना महत्वपूर्ण है। उत्पादक और प्रजनन जीवन में महिलाओं और पुरुषों दोनों की पूर्ण सहयोग और भागीदारी की आवश्यकता है, जिसमें बच्चों की देखभाल और पालन-पोषण और घर के रखरखाव के लिए साझा जिम्मेदारी शामिल है। काम के बोझ और शक्ति और प्रभाव की कमी के परिणामस्वरूप दुनिया के सभी हिस्सों में महिलाओं को अपने जीवन, स्वास्थ्य और कल्याण के लिए खतरों का सामना करना पड़ता है।
महिलाएं किसी भी क्षेत्र में प्रतिभा पूल का आधा हिस्सा बनाती हैं। इसके अलावा, संस्थानों में विश्वास – एक अनुकूल निवेश वातावरण और व्यावसायिक विकास का एक प्रमुख घटक उस डिग्री पर निर्भर करता है जिसमें निर्णय लेने वाले के संदर्भ में समाज की विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। अंत में, समानता और समान परिणाम प्राप्त करने में समान नीतिगत ढांचे शामिल हैं जो पुरुषों और महिलाओं दोनों के विविध दृष्टिकोणों को शामिल करते हैं। इसलिए, महिला सबलीकरण के उपलक्ष्य में सामाजिक और राजनीतिक स्तर या उनके द्वारा घोषित नीतियों को कार्यान्वित करने की बहुत आवश्यकता है।