द कश्मीर फाइल्स पर विवाद : लकीर पीटने का आनंद

Kashmir Photo by KIRTAN CREATIVE from Pexels
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द कश्मीर फाइल्स पर विवाद : लकीर पीटने का आनंद

विवेक रंजन अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित निर्माता अभिषेक अग्रवाल की फिल्म ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ इसी 11 मार्च को सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई है। और इसके साथ ही इस फिल्म के कथानक को लेकर वाद-विवाद गर्म हो उठा। फिलहाल नब्बे के दशक में कश्मीरी पंडितों के घाटी से त्रासदी भरे सामूहिक पलायन पर आधारित यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा रही है। महज़ शुरुआती तीन दिनों में ही इसकी कमाई तीन सौ फीसदी से अधिक बढ़ गई। जबकि देश के कई सूबों में इसे कम स्क्रीन्स पर रिलीज़ किये जाने को लेकर लोगों द्वारा विरोध-प्रदर्शन भी किये जा रहे हैं। कुल मिलाकर वर्चुअल वर्ल्ड से लेकर रियल वर्ल्ड तक इस फिल्म पर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा।


द कश्मीर फाइल्स पर विवादों की शुरुआत हुई मशहूर कॉमेडियन कपिल शर्मा से। असल में जब फैन्स ने डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री से पूछा कि वे अपनी फिल्म को कपिल के स्टेज से क्यों नहीं प्रमोट कर रहे। तो इस पर डायरेक्टर ने कहा कि कपिल ने उनकी इस फिल्म को प्रमोट करने से मना कर दिया है। फिर क्या था, कुछ ही देर में ‘बॉयकॉट कपिल’ सोशल-मीडिया पर ट्रेंड करने लगा। फिर कपिल ने इस पर सफाई देते हुये कहा कि यह गलत है। 


यह विवाद गोधरा कांड तक जा पहुंचा। जब फिल्म के निर्माता अभिषेक अग्रवाल ने प्रधानमंत्री मोदी के साथ सोशल-मीडिया पर अपनी फोटो शेयर की और फिल्म की तारीफ़ के लिये उन्हें धन्यवाद् दिया। जिसके बाद उन्हें लोग राजनीति से फिल्म को दूर रखने की सलाह देने लगे। इस बीच क्रिकेटर सुरेश रैना का ट्वीट भी कश्मीरी पंडितों के समर्थन में आ गया। जिसके बाद लोगों ने उनसे पूछा कि क्या अब हम गुजरात में हुये मुसलमानों के नरसंहार की भर्त्सना करेंगे! फिर 14 मार्च को इस बहसबाजी को हवा देते हुये एक्टर कमाल राशिद खान ने कहा कि– ‘मैं सौ फीसदी आश्वस्त हूं कि विवेक अग्निहोत्री की अगली फिल्म होगी गोधरा फाइल्स, जो इससे भी बड़ी ब्लॉकबस्टर साबित होगी। 


हालांकि लोगों में चल रहा यह लोकप्रिय विवाद भी सियासत से बचा नहीं रह सका। जहां मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह, राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जैसी हस्तियों ने द कश्मीर फाइल्स का मुखरता से समर्थन किया है, वहीं तमाम भाजपा शासित राज्यों में इस फिल्म को टैक्स-फ्री कर दिया गया है। दूसरी तरफ कश्मीरी पंडितों के पलायन पर केरल कांग्रेस के एक ट्वीट ने तहलका मचा दिया, जिसे बाद में हटाना पड़ा। इसमें कहा गया था कि 1990 से 2007 के सत्रह सालों में कुल 299 कश्मीरी पंडितों मारे गये और पंद्रह हजार मुसलमान। इस ट्वीट में कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर जगमोहन को संघ का आदमी कहा गया। इसके बाद आग और भड़कनी स्वाभाविक ही थी।


 द कश्मीर फाइल्स पर मुख्य आरोप यह लगाया जा रहा है कि मूवी में मुसलमानों को पूर्वाग्रहपूर्ण तरीके से विलेन बनाकर दिखाया गया है। फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री बताते हैं कि कश्मीर में शूटिंग के दौरान उन्हें धमकियां मिलती रहीं और आखिरी दिन तो उनके खिलाफ़ फ़तवा भी ज़ारी कर दिया गया। फिल्म के विवादों में घिरने पर इसमें एक अहम रोल अदा करने वाले अनुपम खेर कहते हैं कि अगर फिल्म सफल है तो विवादों की बात ही क्या! वैसे कुल मिलाकर देखें तो इतने विवादों के साथ ही फिल्म रोजाना एक मोटा मुनाफ़ा भी कमा रही है। 


 इसका प्रमाण यही है कि, हालांकि फिल्म की स्क्रीन्स को 600 से बढ़ाकर 2000 कर दिया गया है, फिर भी सारे शो हाउसफुल जा रहे हैं। फिल्म की महत्वपूर्ण विषय-वस्तु और लोगों के बीच उसकी ऐसी लोकप्रियता को देखते हुये गुजरात, कर्नाटक, मध्य-प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड और त्रिपुरा जैसे राज्यों में ‘द कश्मीर फ़ाइल्स’ मूवी को टैक्स-फ्री कर दिया गया है। वहीं मध्य-प्रदेश के गृहमंत्री ने डीजीपी को निर्देश दिया है कि इस मूवी को देखने के लिये हर पुलिस वाले को एक दिन की छुट्टी दी जाये।


अनुपम खेर, मिथुन चक्रवर्ती, पल्लवी जोशी और आदर्श कुमार जैसे अभिनेताओं की इस मूवी की चर्चा से सोशल-मीडिया का बाजार भी गर्म है। हालांकि फिल्म-समीक्षकों की ओर से इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया आई है। फिल्म का केंद्रीय पात्र कृष्णा पंडित (आदर्श कुमार) है, जिसके दादा पुष्करनाथ (अनुपम खेर) सन नब्बे के दौरान कश्मीर से पलायन कर गये थे। पर उनके मन में अपनी जन्मभूमि के प्रति लगाव कहीं न कहीं अब भी भरा हुआ है, जो समय-समय पर छलक पड़ता है। 


कृष्णा पंडित अपने विश्वविद्यालय यानी ईएमयू से छात्रसंघ का चुनाव भी लड़ता है। वह सुनी-सुनाई बातों पर आंख बंद करके यकीन कर लेने की बजाय खुद कश्मीर जाने और वहां के हालातों से रूबरू होता है। और यहीं उसका अपने ज़िंदगी के एक बहुत बड़े सच के साथ सामना होता है, जिससे फिल्म की कहानी को एक दिशा मिल जाती है। यहां गौरतलब है कि ईएमयू काफी हद तक जेएनयू की याद दिला देता है। फिल्म में पल्लवी जोशी ने विश्वविद्यालय की प्रोफेसर का अभिनय किया है। 


द कश्मीर फाइल्स मूवी कश्मीरी पंडितों के पलायन के साथ जुड़े मानवीय पहलुओं को सफलतापूर्वक उकेरती है। पर फिल्म को लेकर जो सबसे ज्यादा आलोचना समीक्षकों द्वारा की गई उसका लब्बोलुआब यह है कि मूवी किसी शुद्ध कॉमर्शियल या फ़ॉर्मूला फिल्म की तरह अपने किरदारों को साफ तौर पर ‘ब्लैक एंड व्हाइट’ यानी हीरो और विलेन या अच्छे और बुरे लोगों में बांटकर दिखाती है। हालांकि अभिनय सबका काबिलेतारीफ़ रहा है। खासकर अनुपम खेर का, जो खुद एक कश्मीरी पंडित हैं। 


पर कहीं न कहीं एक निरपेक्ष दर्शक को मूवी का पूरा कथानक कहीं न कहीं एकपक्षीय प्रतीत होता ही रहता है। और अगर वह खुद भी कुछ ऐसे ही पूर्वाग्रहों से न भरा हो तो बहुत संभावना है कि फिल्म को नकार दे। पर जैसा कि हम अपने आसपास देख सकते हैं, कि आज समाज में ऐसे लोग भी बहुत हैं। सो, इतने विवादों के बावज़ूद ‘द कश्मीर फाइल्स’ जैसी मूवीज़ की आर्थिक सफलता में कोई शक नहीं किया जा सकता। 

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