ब्राह्मण, राक्षस और चोर
एक गाँव में द्रोण नाम का एक ब्राह्मण रहता था। वह बहुत गरीब था। पूजा-पाठ से जो कुछ मिलता था उसी से वह अपना जीवन यापन करता था। एक दिन एक मेजबान ने गरीब ब्राह्मण को दो अच्छी दूध देने वाली गायें दान में दीं।
वह उसे दान की गई दो गायों को घर ले आया। एक बार की बात है, यह ब्राह्मण सूखी पोली भाजी खाता था! उसने गाँव में अब दूध, दही, मक्खन और घी बेचना शुरू किया और घर पर दूध की रोटी खाने लगा।
द्रोण ब्राह्मण की उन दो गायों पर एक चोर की नजर थी। चोर की प्रवृत्ति एक उपयुक्त अवसर देखने की थी, उस ब्राह्मण की इन दो गायों को चुरा लेने की। श्याम में चोर गायों को चुराने निकला, लेकिन रास्ते में चोर को एक राक्षस मिल गया। उसने उससे पूछा, “कहां जा रहे हो ?”
चोर ने कहा, ‘मैं द्रोण ब्राह्मण की गायों को चुराने जा रहा हूं। लेकिन तुम कहाँ जा रहे हो?’ ओह, मैं तो उस ब्राह्मण को मारकर खाऊंगा। यह ब्राह्मण मन्त्र-जप कर मेरा पीछा करता था, मेरा अन्न-जल काट दिया गया है, परन्तु आज मैं उसे खाने जा रहा हूँ।
दोनों ने दोस्ती का हाथ बढ़ाया। चोर और दानव दोनों उस ब्राह्मण के द्वार पर आए। दोनों ने घर में झाँका तो देखा कि बेचारा ब्राह्मण चैन की नींद सो रहा है। ब्राह्मण को खाने वाला था दानव, वही चोर बोला अरे रुको! मैं पहले दोनों गायों को लेता हूं, फिर तुम उन्हें खाओ। उस पर दानव ने कहा, वाह! तुम बहुत बुद्धिमान हो! यदि आप गायों को नम्र करते हैं, तो क्या वे नहीं उठेंगी? ‘तो मैं क्या करूं ‘ चोर ने कहा।
इस कथन ने चोर को नाराज किया और चोर ने अपनी हड़बड़ी नहीं छोड़ी और बात छेड़ता रहा। ऐसा करते-करते उनकी आवाजें धीरे-धीरे गर्म होने लगीं। दोनों के बीच बातचीत खत्म होने लगी और विवाद बढ़ता गया।
उन दोनों के पास अपनी तेज आवाज चुप करने के कोई रास्ते नहीं थे। आवाज सुनकर गायें चिल्ला उठीं। मोती भौंकने लगा। ब्राह्मण भी जाग गया। उसने राक्षस को पकड़ लिया और चिल्लाया। उस आवाज के साथ पड़ोसी लोगों ने लाठी, मशाल आदि को लेकर दौड़े। उन्हें देखकर दानव भाग गया और चोर भी वह देखकर धूम भाग गया।
कहानी से सीख:
मुक्त शब्दों में बहस न करें। तर्क लाभदायक होने से तो बहुत दूर हैं, लेकिन अक्सर नुकसान ही होता है। किसी बात की असफलता को भी हमे सहना चाहिए यानी बौखलाहट से नुकसानदायी कदम नही उठाना चाहिए।