भेड़िया और इंसान
राधा रास्ते पर बैठी रो रही थी; कि उसके पड़ोस में रहने वाला राजू उधर से गुज़रा। दोनों एक ही स्कूल में साथ-साथ पढ़ते थे। राधा को इस तरह गुमसुम सिसकते हुये, रास्ते के किनारे बैठी देखकर, राजू से रहा न गया। वह उसके पास जा पहुंचा।
राधा के सिर पर हाथ रखकर एक सच्चे साथी की तरह पूरी सहानुभूति के साथ राजू ने पूछा, ‘क्या हुआ है, क्यूं रो रही हो राधा!’ उसके यह पूछते ही राधा की सिसकी और भी बढ़ गई। उसने राजू की ओर एकबार देखकर मुंह दूसरी तरफ कर लिया, बोल कुछ नहीं पाई। रोती रही बस। राजू ने फिर से पूछा, ‘क्या घर पर किसी ने कुछ कहा है, मारा है!’ इस पर भी राधा कुछ बोल न पाई, बस एक बार वैसी ही बेचारी की तरह उसकी ओर देखकर धीरे-धीरे सिर हिला दिया, कि हां।
राजू उसका पड़ोसी था, सो जानता था कि राधा के मां-बाप कुछ गरीब ज़ुरूर थे, पर अपनी इस इकलौती लाडली को जान से ज्यादा प्यार करते थे। वह उसे समझा-बुझाकर घर ही ले जाने को सोच रहा था, क्योंकि आजकल उसके गांव में एक तो कुछ रहस्यमयी चोरों का बड़ा आतंक था, दूसरे उसने अपने दोस्तों से एक भेड़िये के उधर आने की बात भी सुन रक्खी थी।
पर जब इस बार राधा ने उसकी ओर निरीह आंखों से देखते हुये सिर हिलाया तो वह उसका चेहरा देखकर सहम सा गया। राधा का मुंह लाल-लाल हो आया था, जिससे साफ लगता था कि उसे मार बहुत बुरी तरह पड़ी है।
राजू को जाने क्यूं लगा कि राधा उससे कुछ छिपा रही है। क्योंकि उसे यकीन था कि राधा के मां-बाप उसे इतनी बुरी तरह नहीं मार सकते। सो, उसने इस बार राधा को कंधे से पकड़कर झिड़का और सीधे उसकी आंखों में झांककर बोला, ‘सच-सच बोल, क्या हुआ है, किसने मारा है तुझे! क्योंकि मैं अच्छी तरह जानता हूं कि रामू काका तुझे इस कदर नहीं पीट सकते, और फिर काकी का तो कोई सवाल ही नहीं।’ पर राधा बोली कि, ‘नहीं मानते तो न मानो, पर मुझे अकेला छोड़ दो, और चले जाओ यहां से, मैं हाथ जोड़ती हूं तुम्हारे।’
उसके ऐसे तेवर देखकर राजू समझ गया कि वह फिलहाल तो झूठ नहीं बोल रही, सो कुछ नरम पड़ते हुये बोला, ‘देखो, मैं कोई तुम्हारी बुराई नहीं चाहता था। न बताना हो कुछ न बताओ, पर ऊपर वाले के वास्ते यहां से उठ चलो, इस सुनसान रस्ते पर अकेली बैठी रहना ख़तरे से खाली नहीं।’ उसकी ऐसी प्रार्थना पर राधा भी पिघल गई, और बेमन सी चुपचाप उठकर उसके साथ धीरे-धीरे चल पड़ी। दोनों बिना कोई बातचीत किये चलते रहे।
पर राजू को बात कुछ हजम न हो रही थी, सो कुछ देर बाद उसने फिर से पूछ ही लिया, ‘राधा, मैं नहीं कहता कि तुम कुछ झूठ बोल रही हो, पर तुम्हें शायद पहली ही बार इतनी मार पड़ी है, जान सकता हूं किसलिये!’ इस बार राधा ने बेझिझक हो तपाक से कह दिया, ‘चोरी के लिये।’
अब तो राजू के आश्चर्य का और भी ठिकाना न रहा, राधा और चोरी! वह भी किसलिये! पर अब वह यह सबकुछ बोल ही न पा रहा था। फिर भी चलते हुये धीरे से पूछा कि – ‘वैसे, क्या चुराया था तुमने!’ राधा बोली, ‘मां के गहने, और बाबूजी की जेब से उनके सारे रूपये।’ राधा ने यह बात उसी आसानी के साथ कह दी, पर अब तो राजू सन्नाटे में आ गया।
वह समझा था कुछ छोटी-मोटी खानेपीने की चीज या दो-चार रूपये निकाल लिये होंगे। पर यहां तो.. । लेकिन अब वह अनायास राधा का हाथ पकड़ फिर वहीं सुनसान रस्ते पर बैठ गया, और कहा, ‘राधा मैं समझ नहीं पा रहा कुछ, क्या करती तुम इतने पैसे आखिर!’ राधा ने कहा, ‘शांत रहो, सब बताती हूं, जबकि मैं जानती हूं इसके बाद मेरा बचना भी मुश्किल है। और इसीलिये इतनी मार खाकर भी मैंने किसी से कुछ नहीं बताया अब तक, मुंह तक न खोला। पर तुम जान लो। वो सब मैं उसी भेड़िये को देने वाली थी, जिसने आजकल पूरे गांव में आतंक मचा रक्खा है।’
भेड़िया और पैसा.. राजू कुछ भी नहीं समझ पा रहा था। उसका दिमाग़ सांय-सांय करने लगा। असल में वह राधा का पड़ोसी भले ही था, पर इधर कुछ महीने से शहर में अपने मामा के यहां रहने लगा था। उसने सुन ज़ुरूर रक्खा था कि आजकल इधर गांव में एक भेड़िये ने तहलका मचाया हुआ है। और रहस्यमयी चोरों का भी भय छाया हुआ है यहां पर। लेकिन..!
इधर राधा बोलती ही जा रही थी– ‘वह मुझे स्कूल जाते हुये इसी सुनसान रस्ते पर मिला। पहली बार तो मैं किसी तरह बचकर निकल गई। शायद इसलिये कि मौके से रास्ते पर दो-एक और लोगों के भी आने-जाने की आहट सुनाई दी; और वह खुद भी कहीं चुपचाप दुबक गया। तब मैंने अपनी ज़िंदगी में पहली ही बार कोई भेड़िया कहानियों और तस्वीरों की बजाय खुद अपनी आंखों से देखा था।
पर अगली बार जब वह मिला तो मैं बिलकुल ही अकेली थी; और सामने आते ही उसने मुझे पटका और दबोच लिया। मैं उसे देखते ही एकदम से डर गई, और बेहाल हो गई थी। पर तब तो मेरे बचेखुचे होश भी उड़ गये जब वह इंसानों की बोली में बोला। फिर मुझे छोड़ते हुये कहा कि अगर मैं अपने घर के सारे जेवर और पैसे लाकर उसे सौंप दूं, तो आगे से वो मुझे बिलकुल तंग नहीं करेगा। मैंने जान बचाने को हां कर दी, पर चोरी करते हुये घर पर ही पकड़ी गई। इसके आगे की सारी कहानी तो तुम्हें पता ही है।’
राजू तो दिल थामकर सबकुछ सुन रहा था। अचानक उसे होश आया। उसने राधा से कहा, ‘पर क्या तुमने इतना बड़ा कदम उठाने से पहले अपने मां और बाबूजी से यह बात बिलकुल भी नहीं बताई!’ राधा बोली, ‘किसी से भी बताती तो शायद अब तक ज़िंदा न बचती। और शायद अब न ही बचूं!’
‘पर क्या तुम मुझे किसी तरह उसको दिखा सकती हो! क्योंकि तुमने जो बताया कि वह इंसानों की बोली बोलता है; क्या तुमको ये बात कुछ अजीब नहीं लगती!’ राजू ने कहा। राधा बोली, बिलकुल दिखा सकती हूं, भले अब इसके लिये मुझे अपनी जान पर ही क्यों न खेलना पड़े। वैसे भी अब बचने की उम्मीद तो कम ही है।’ राधा पूरी दृढ़ता से बोलती जा रही थी। ‘मैं सोचती हूं कि मैं उसे झूठमूठ कह दूं, कि जो तुमने मांगा था वो मैं ला रही हूं, और तुम उसे कहीं दूर रहकर देख लेना। क्योंकि मैं नहीं चाहती कि मेरी वज़ह से तुम्हारी भी जान पर बन आये।’ राजू ने कुछ गहरी सोच में डूबे हुये इस बात पर हामी भर दी।
अगले ही दिन को यह सब करने की ‘प्लानिंग’ बनी; उस दिन दोनों अपने-अपने घर को चले गये। अगले दिन राजू और राधा दोनों फिर मिले। राधा आगे-आगे चली, और राजू उससे काफी दूरी बनाकर बचता-छिपता उसके ही पीछे हो लिया। उस अड्डे पर पहुंचकर, जहां उस भेड़िये के मिलने की संभावना थी, राजू यह देखकर एक बार फिर बुरी तरह सहम गया कि ये वही जगह है जहां पर कल राधा बैठी सिसक रही थी, और राजू उससे अचानक आकर मिला था। जिसके बाद दोनों साथ-साथ घर लौट आये थे।
तभी थोड़ी देर में एक अजीब खूंखार सा भेड़िया कहीं दूर किसी कोने से उधर की ओर ही आता नज़र आया। राजू को वह अजीब ही लग रहा था, क्योंकि उसने शहर में रहने के दौरान चिड़ियाघर में जो भेड़िये देखे थे, उनसे तो चाल-ढाल और अंदाज़ में हर तरह से यह कुछ अलग ही लग रहा था।
राजू ने बीते एक दिन के दौरान पहले से ही पूरी तैयारी कर रक्खी थी। और जिसके बारे में उसने जानबूझकर राधा से भी कुछ न बताया था। पर तैयारी के मुताबिक गांव के ही चार-छ: वयस्क हथियार सहित उसके साथ चुपके से धीरे-धीरे वैसे ही चले आये थे, जैसे वह छिपता हुआ कुछ दूरी बनाकर राधा के पीछे-पीछे आया। ये सब अब मौके की ताक में थे।
पर इसी बीच गड़बड़ ये हो जाती है, कि राधा उस भेड़िये को अपनी ओर ललचाई नज़र के साथ तेजी से आता हुआ देखते ही बेहोश होकर गिर जाती है। अब मजबूरन राजू और उसका पूरा ‘ग्रुप’ तुरंत हरकत में आ जाता है। और वे बस पल भर में वहां होते हैं। भेड़िया सामने होता तो है पर भाग नहीं पाता। राजू और उसके साथियों के लिये ताज़्जुब की बात ये भी होती है, कि वह उन हथियारबंद लोगों से अपने को घिरा देखकर बुरी तरह घबरा जाता है। पर न तो हमला करता है, न ही वहां से भागने की कोई भी कोशिश। हालांकि वह चाहे तो मरते-मरते भी इनमें से एकाध लोगों का काम तमाम कर दे, या फिर कम से कम वहां से भाग जाने का कोई जतन तो करता।
पर बजाय इसके, वह इंसानों की तरह ही हाथ जोड़ने जैसा अपने अगले दोनों पंजे जोड़कर और सिर नीचे करके वहीं बैठ जाता है; जैसे कि अपनी जान की भीख मांग रहा हो! वो कुछ और भी आगे बढ़ते, इससे पहले ही उसने अपना मुखौटा उतारना शुरू किया। और फिर पता चला कि यह कोई और नहीं, बल्कि उनके गांव का ही धनी और सम्मानित कहलाने वाला एक व्यक्ति था, जो भेड़िये की खाल पहनकर ऐसा पहले भी कई लोगों के साथ कर चुका था।
फिलहाल, अब भेड़िये की खाल अलग पड़ी थी, और खाल में छिपा वह इंसान सबके सामने था।
लोगों ने इंसान की खाल में छुपा भेड़िया तो सुन रक्खा था; पर भेड़िये की खाल में छिपे इस इंसान को पहली बार आज अपनी आंखों के सामने देख रहे थे। जो कल तक गांव का सबसे इज्जतदार और रईस व्यक्ति समझा जाता था; अब गांव वालों ने उसे पकड़कर पुलिस में दे दिया। और यह सब राजू की बुद्धिमानी व साहस के चलते ही संभव हो पाया था। वह छोटा सा लड़का ‘राजू’ अब गांव की नज़र में किसी हीरो से कम न था…