कृषि-कानूनों की वापसी के सबक

Indian Farmer Photo by Amit Mishra from Pexels
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कृषि-कानूनों की वापसी के सबक

 सरकार द्वारा तीनों विवादित कृषि-कानून वापस लेने के बाद अब लंबे समय से चल रहे किसान-आंदोलन व उससे उपजी तमाम अव्यवस्थाओं से निज़ात मिलने की उम्मीद जगी है। अलबत्ता, असल सवाल अब भी अपनी जगह है, कि क्या किसानों की उन सारी समस्याओं का समाधान हो गया, जिसे लेकर अब तक इतनी गहमागहमी थी।


 ऐसे में यह महत्वपूर्ण विमर्श का विषय हो जाता है, कि क्या किसानों की उन सभी परेशानियों का निराकरण हो गया जिसके मद्देनज़र ये तीनों कृषि-कानून लाये गये। दूसरी तरफ विपक्षी राजनैतिक दलों में भी इन अनसुलझी बातों को लेकर सुगबुगाहट ज़ारी है। वे इस मुद्दे पर अपनी स्थिति साफ़ करना चाहते हैं। विवादित कृषि-कानूनों की वापसी को यूपी और पंजाब जैसे महत्वपूर्ण सूबों के आसन्न विधानसभा चुनावों के मद्देनज़र उठाया गया एक शुद्ध राजनैतिक कदम समझा जा रहा है।

इसे जनतंत्र में लोकहित पर राजनीति का हावी होना बताया जा रहा है। जो कि स्पष्ट: देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के स्वास्थ्य के लिये घातक है। सवाल यह भी है, कि कृषि मामलों के लिये सरकार द्वारा नवगठित समिति किसानों की उन मौलिक समस्याओं को हल करने में किस हद तक सफल रहेगी! या कि यह भी महज़ एक सियासी कवायद ही साबित होगी। क्या मौके की नज़ाकत को भांपते हुये, किसान-आंदोलन को येन-केन समाप्त करने के उद्देश्य से उठाये गये इस राजनैतिक कदम से किसान संतुष्ट हो गये हैं!


 हालांकि फिलहाल ऐसा कहीं से भी नज़र नहीं आता। किसान-संगठन अब भी एमएसपी आदि मसलों को लेकर आशंका जता रहे हैं, और सरकार द्वारा उसका स्पष्टीकरण चाहते हैं। और फिर इस आंदोलन को सफल मानते हुये अपने नये आत्मबल के साथ किसान-संगठन आगे ख़ामोश रहेंगे; यह उम्मीद करना भी बेमानी है। गौरतलब है कि उन्होंने अपनी आंदोलन संबंधी योजनाओं को अभी तक यथावत् ही रक्खा है। जिसके तहत आगामी 29 नवंबर को किसानों द्वारा संसद के घेराव की योजना भी शामिल है। 


 सो, सरकार को वक़्त रहते इस संबंध में कोई ठोस व विश्वसनीय पहल करने की दरकार है। क्योंकि यदि बढ़े हुये मनोबल के साथ किसान-संगठन फिर से कहीं विरोध पर उतर आये तो सरकार का यह तथाकथित राजनैतिक संवेदना के तहत लिया गया फ़ैसला, या कहें सियासी दांव उल्टा ही पड़ जायेगा। चुनांचे, उससे न तो सरकार का कोई भला होने वाला है और न ही किसानों का। 


 इसलिये हमारे नीति-नियंताओं को इसके प्रति पूरी तरह सचेत रहने की ज़ुरूरत है। यह बात दीगर होगी कि अब चुनावों से पहले सरकार असंतुष्ट किसानों को तुष्ट करने के लिये कौन सी लुभावनी घोषणा करने वाली है..

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