एक दिन का रिकॉर्ड
प्रधानमंत्री मोदी जी के जन्मदिन पर विगत शुक्रवार को एक ही दिन में रिकॉर्ड ढाई करोड़ टीके लगाकर जहां देश ने इस बीमारी के ख़िलाफ अपनी सामर्थ्य प्रकट कर दी, वहीं इसे लेकर सियासी सुगबुगाहट भी शुरू हो ही गई। एक तरफ विपक्छ ने इस दिन हुये हर तड़क-भड़क भरे आयोजन को ढकोसला मात्र कहा, तो प्रधानमंत्री जी खुद भी इस पर चुटकी लेने से चूके नहीं।
पणजी, गोवा में एक कार्यक्रम के दौरान बिना किसी पार्टी का नाम लिये उन्होंने कहा- कि इससे एक दल बीमार हो गया है। पर असल सवाल ये है कि क्या इस ‘उपलब्धि’ के बाद हमें इसी तरह की बातों में उलझना चाहिये! या कि उसे एक नया आयाम देते हुये इस भयावह संक्रमण से अपनी सुरक्छा और भी पुख़्ता बनाने पर ध्यान देना चाहिये। आखिर इससे एक बात तो पक्के तौर पर निकल कर सामने आई; कि अब तक हम इस बीमारी के ख़िलाफ लड़ने में अपनी पूरी सामर्थ्य का इस्तेमाल नहीं कर सके।
हालांकि इस में दो राय नहीं कि भारत जैसी विशाल जनसंख्या वाले मुल्क में एक समय जिस भयावहता के साथ कोरोना फैलना शुरू हुआ, कि सबको टीके मुहैया कराना एक बड़ी चुनौती थी। बावज़ूद इसके सरकार बहुत सोच-समझकर चलती दिखी, और विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा कई कंपनियों को अनुमोदन मिलने के बावज़ूद सिर्फ़ दो को ही भारत में अनुमति मिली। नतीजतन टीके की भारी किल्लत और अस्पतालों व टीकाकरण केंद्रों पर सहमाने वाली भारी भीड़ स्वाभाविक ही नज़र आई।
विडम्बना यह रही कि इसी समय निजी अस्पतालों में इसकी कोई कमी न प्रतीत हुई; वे इसे दुगुने-तिगुने दामों पर बेच अपनी तिज़ोरियां भरते गये। सरकार उस समय कुछ असहाय सी नज़र आने लगी थी। दुनिया को दवाओं-टीकों की बड़ी इमदाद़ मुहैया कराने का दम भरने वाले हम स्वयं दूसरे देशों की ओर मदद पाने के लिये देखने लगे। ऐसे में कहना न होगा कि यदि और भी कुछ मान्यताप्राप्त कंपनियों की वैक्सीन को देश में अनुमति मिलती, और इसे पल्स-पोलियो अभियान की तर्ज़ पर घर-घर पहुंचाया जाता, तो कम से कम दूसरी लहर से होने वाली विशाल जन-धन हानि को काफ़ी हद तक कम किया जा सकता था।
आखिर किसी सार्वजनिक समस्या का हल भी सार्वजनिक स्तर पर ही ढूंढ़ा जा सकता है; और ऐसे सार्वजनिक स्तर के निर्णय सरकार ही लेती है। यह सही है कि सहसा सबको टीके दिलाना आसान न था, क्योंकि हमारी जनसंख्या अत्यधिक है। पर इसका सकरात्मक पहलू ये भी है कि अधिक जनसंख्या के कारण हमारे पास कहीं न कहीं काम करने वाले भी पर्याप्त संख्या में मौज़ूद हैं। आखिर ढाई करोड़ टीके एक दिन में लगाने का रिकॉर्ड हमने यूं ही तो नहीं बना लिया! इसमें देश के स्वास्थ्य कर्मियों के महती योगदान को नकारा नहीं जा सकता।
जो भी हो, आज हम उस स्थिति से बहुत हद तक उबर चुके हैं। सरकार द्वारा सबको मुफ़्त टीके दिलाने की घोषणा सराहनीय है। अब तक कई अन्य कंपनियों को भी देश में टीके आपूर्ति करने की अनुमति मिल चुकी है। और इसकी किल्लत से अब निज़ात मिल चुकी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री की मानें तो देश भर में करीब अस्सी करोड़ लोगों को अब तक टीका लग चुका है, और राज्यों के पास अभी करोड़ों की तादाद में टीके बचे रक्खे हैं।
ऐसे में, हम यदि ढाई करोड़ टीके एक दिन में लगाने में सफल होते हैं तो यह हमारी कोरोना से युद्ध में बढ़ी हुई सामर्थ्य को ही दर्शाती है। पर असल सवाल तो यह है कि मा. प्रधानमंत्री के जन्मदिन पर बना रिकॉर्ड क्या हम आगे भी नहीं दोहराते रह सकते! आखिर देश की सक्छमता तो इस मामले में प्रमाणित हो ही चुकी है। बाकी तो सबकुछ हमारे नीति-नियंताओं पर ही निर्भर है..