वक्त़ा और श्रोता
एक विद्वान वक्ता एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर व्याख्यान दे रहा था। लेकिन दर्शक डगमगाने लगे। कोई इधर उधर देख रहा था तो कोई गली में खेल रहे बच्चों को देख रहा था। तब वक्ता ने श्रोताओं का ध्यान अपने व्याख्यान की ओर आकर्षित करने के लिए एक कहानी सुनाना शुरू किया।
कहानी शुरू होते ही सभी श्रोता जादू की छड़ी की तरह कहानी को बहुत ध्यान से सुनने लगे। वक्ता ने कहा, ‘एक बार की बात है, एक देवता, एक जल सांप और एक चिमनी एक साथ यात्रा पर गए थे। चलते-चलते वे एक नदी के पार आ गए। चिमनी उड़ गई और नदी के दुसरे छोड़ पहुंच गई। पानी का सांप तैरकर पानी के पार पहुंच गया।” इतना कहकर वक्ता ने अपना आंशिक भाषण दोबारा शुरू किया। दर्शक अब बेसबरी से कहने लगे, ” श्रीमान, भगवान का क्या हुआ, उन्होंने नदी को कैसे पार किया।” उन तीनों का क्या हुआ?” वक्ता ने शांति से उत्तर दिया, “वह ईश्वर है; तो यह स्वाभाविक ही है कि उसने नदी पार करने की शक्ति हो। हो सकता है कि वह पानी पर चल रहा हो, या वह पानी को दूर खींचते तैर कर जाए, लेकिन वह वैसे ही किनारे पर रुक गया।”
दर्शकों ने बड़ी उत्सुकता से पूछा कि, भगवान क्यों रुके थे। वक्ता ने कहा, “भगवान नदी के किनारे बैठे उन मूर्खों के बारे में सोच रहे हैं जो महत्वपूर्ण विषयों पर दिलचस्प व्याख्यान लिए बिना कुछ और चीजें पसंद करते हैं। यदि आप इस महत्वपूर्ण विषय पर मेरे विचार ध्यान से सुनते हैं और इसके बारे में कुछ करते हैं और इससे अपने राज्य को बचाते हैं, तो भगवान निश्चित रूप से दूसरी तरफ जाएंगे। ”
क्या कहती है यह कहानी !
अर्थ और बोध
एक बार एक महान वक्ता अपना भाषण दे रहे थे। श्रोता कुछ देर तक उनका भाषण ध्यानपूर्वक सुनते है, लेकिन कुछ देर बाद उनका ध्यान भटकने लगता है। वक्ता बहोत चाणाक्ष थे। वह परिस्थिति नुसार अपनी भाषण शैली बदलता है, और एक कहानी सुनाने लगता है। कहानी का तो एक बहाना था, दरअसल वह वक्ता श्रोताओ का ध्यान फिरसे आकर्षित करना चाहता था। कहानी सुनाकर वह अपने महत्वपूर्ण विषय पर के भाषण का महत्व बताता है। श्रोताओ को यह बात समझ आती है, और उनका भाषण फिरसे ध्यानपूर्वक सुनते है।
कहानी से सिख:
कहानी वक्ता और श्रोता का तात्पर्य यह दर्शाता है की,
कभी-कभी आपको अपनी अच्छी बाते, राष्ट्रहित और जनहित की योजनाओं को लोगों को अच्छी तरह समझाने के लिए कुछ हथकंडे अपनाने पड़ते हैं। श्रोताओ को यह सिख मिलती है की, अपना ध्यान वहां केन्द्रित होना चाहिए जो अपने और सामाजिक हित का हो।