पछतावा
उदयपुर नाम के गांव में एक मोहनलाल नाम का एक किसान अपनी पत्नी और तीन बेटों के साथ रहता था। मोहनलाल खेतों में मेहनत करके अपने परिवार का पेट पालता था। लेकिन उसके चारों बेटे आलसी थे। वो पूरे दिन ऐसे ही बैठ कर समय बर्बाद करते रहते थे|
मोहनलाल को अपने बेटे की चिंता सता रही थी कि मेरे मरने बाद इन तीनों का क्या होगा| उन्होंने अपने बेटे सब को बुला कर कहा की मैं बुढ़ा हो गया हूँ मेरे से अब काम नही संभलता अब तुम तीनों काम को संँभालो| लेकिन वो तीनों ने एक नही सुनी और वहाँ से निकल गए|
फिर मोहनलाल ने सोचा की क्यों न इन तीनों की शादी करवा दे शयद तब इन तीनों की अकल ठीक हो जाएगी| मोहनलाल ने कुछ महीने बाद तीनों की शादी करवा दी| तब भी वो लोग वैसे ही इधर- उधर घुमा करते थे| मोहनलाल की एक दिन ऐसे मे ही मौत हो गई और घर पे खाने की भी लालत पर गयी|
अब वो तीनों बहुत सोच मे पर गए जो अब तो कुछ करना होगा वरना हम सब ऐसे ही मरेंगे| उन सब ने सोचा की क्यों न अब माँ को खेत में काम करने भेज दिया जाए ताकि हमें मेहनत नहीं करना पड़े| और अगले दिन से उनकी माँ भी खेत मे काम करने चले गयी और ये तीनों काफी खुश हुए|
एक समय बाद उनके भी बच्चे हुए और इस से उन तीनों की माँ काफी खुश हुई जो अब शायद वो अपनी जिम्मेदारी समझेंगे| अब माँ की भी मौत हो गयी| उनके बच्चे बड़े हुए और जिम्मदारी बढ़ी| एक दिन अचानक उनके बच्चे की तबियत खराब हो गयी और उनके पास इलाज के पैसे नहीं थे और पैसे के अभाव से इलाज नहीं करवा सके जिसे उनके बेटे की मौत हो गयी|
उन्हें बहुत दुख हुआ की अगर आज हम कुछ करते रहते तो शायद हम अपने बेटे को बचा पाते| और उन्हें इस बात का भी अंदाज़ा लगा की माँ और पिताजी हमें क्यों काम करने बोल रहे थे | और उस दिन से उनकी अकल ठिकाने लग गयी और तब से वो तीनों मेहनत करने लगे |
सीख: हमें आलस्य को त्यागकर मेहनत करना चाहिए। मेहनत ही इंसान की असली दौलत होती है।