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महात्मा देव

frienship @pexels
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महात्मा देव

किसी गाँव मे महात्मा और देव दो दोस्त रहते थे| दोनो की दोस्ती काफी सच्ची थी| लेकिन देव काफी बदमाश था, वो न अपने घर वालों का कोई बात सुनता न ही किसी और का| और वो अपने माँ- बाप का इज्जत भी नही करता जिससे उसके घर वाले और उसके दोस्त काफी नाराज रहते थें|

जबकि महात्मा काफी संस्कारी और अपने घर वालों की काफी इज्जत करता था| जिससे उसके व्यवहार से उसके घर के लोग काफी खुश रहते थे| महात्मा बचपन में अपने पढाई में बहुत ही कमजोर था लेकिन उसे पुस्तकें पढ़ने का बहुत ही शौक था जब भी महात्मा को कोई अच्छी पुस्तक मिलती तो उसे खूब मन लगाकर पढ़ता था|

एक बार महात्मा को एक ऐसा पुस्तक मिला जिसमें श्रवण कुमार और उनके माता पिता के सेवा की कहानी थी किस प्रकार श्रवण अपने प्राणों की आहुति देकर भी अपने माता पिता की सेवा करते है जिसे पढ़कर महात्मा बहुत ही प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया की वे भी श्रवण कुमार की तरह अपने माता पिता की सेवा करेगे|

जबकि देव को पढ़ने लिखने मे बिल्कुल भी रुचि नही रहती थी| ये कहानी महात्मा ने आकर देव को बताया तो वो इस कहानी को हल्के मे लिया|और उस बात को अनसुनी कर दी | एक दिन महात्मा के माँ – बाप की तबियत बिगर गयी तो उसने खूब सेवा किया और उसके सेवा से उसके माँ – बाप काफी प्रसन्न हुए|

ये सब देव भी देख रहा था लेकिन उसके दिमाग मे ये सारी बात नही आ रही थी| एक दिन पड़ोस में हरिश्चन्द्र के जीवन पर आधारित नाटक को देखने का दोनोें दोस्तों को मौका मिला| दोनों काफी खुशी- खुशी नाटक देखने गए|

हरिश्चन्द्र के नाटक को देखकर देव के आँंखो में आँसू आ गये और उसने जीवन भर सत्य की राह पर चलने की कसम खायी चाहे इसके लिए उसे कितना भी कष्ट क्यू न उठाने पड़े और  वो अपने दोस्त जैसा बनने का प्रण लिया| 

हमें जीवन मे हमेसा सही रास्ता को चुनना चाहिए क्युंकि सही रास्ता ही हमे सफलता की ओर लेकर जाती हैं|

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