नीट-जेईई मेन्स की अगले माह की शुरूआत में प्रस्तावित परीक्षाओं को लेकर देश भर में जद्दोजहद जारी है।
सुप्रीम कोर्ट से हरी झंडी मिल जाने और देश-विदेश के तमाम शिक्षाविदों के समर्थन के बाद जहाँ सरकार अब इसे और नहीं टालना चाहती, वहीं कोरोनाकाल के मद्देनज़र परीक्षार्थियों और उनके परिजनों की चिंता भी खारिज नहीं की जा सकती। वह भी तब, जब कदाचित् ऐसी ही लापरवाहियों और लॉकडाउन में ढील के चलते भारत कोविड-१९ के मामलों में विश्व में ‘टॉप’ पर आ चुका है।
हालाँकि शिक्षा विभाग द्वारा एक केंद्र पर सौ-डेढ़ सौ परीक्षार्थियों की सीमा तय करने, सामाजिक दूरी आदि नियामकों का सख्ती से पालन करने और उन्हें मनमाफिक परीक्षा केंद्र आवंटित करने की बात से व्यवस्था के प्रति काफी हद तक आश्वस्त हुआ जा सकता है।
साथ ही यह भी, कि अपने भविष्य के प्रति चिंतित लाखों छात्र इम्तिहान के लिये अपना प्रवेश पत्र ऑनलाइन डाउनलोड कर चुके हैं। और इस तरह परीक्षा में उपस्थित रहने को तैयार नजर आते हैं। पर इस बीच इन सबसे अलग इस पर सियासत और धरना-प्रदर्शन का जो दौर शुरू हो चुका है वह और भी चिंताजनक है।
विपक्ष को कम से कम इतना तो समझना होगा कि इस तरह के आंदोलनों में जो भीड़ इकठ्ठा होती है, उसमें आने वाले ज्यादातर लोग कोरोनाकाल की आवश्यक सतर्कता भी नहीं बरतते दिख रहे। क्या यह बात परीक्षा कराने से कम खतरनाक है!
पर अंततोगत्वा सरकार व अन्य जिम्मेदार एजेंसियों को परीक्षा संचालित करने का निर्णय लेने से पहले यह अवश्य विचार करना चाहिये कि विद्यार्थियों के भविष्य के लिये उनका जीवन दांव पर नहीं लगाना चाहिये। इस संबंध में प्रसंगवश, हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की कोविड-१९ के लिये सख्ती में दी जा रही ढील के प्रति जतायी गई नाराजगी का भी संज्ञान लिये जाने की ज़ुरूरत है।