एक समय किसी शहर में दो भाई रहते थे। विवाह के बाद उन दोनों भाइयों ने अपनी-अपनी गृहस्ती पास पास में ही बसा ली और पड़ोसी बन कर रहने लगे।
बड़े भाई और उसकी पत्नी की प्रकृति सीधी और सहज थी, वे संतोषी थे और इमानदारी से अपना जीवन बिताना पसंद करते थे। उनके मन में कोई कपट या दोष नहीं रहता था। छोटे भाई कि पत्नी थोड़ी लालची प्रवृत्ति की थी। वह हर चीज़ में अपना फायदा देखती थी और जब तक उसका स्वार्थ सिद्ध न हो, वह कोई काम नहीं करती थी।
एक दिन बड़े भाई को अपने आँगन में एक चिड़िया का बच्चा घायल अवस्था में मिला। उसको दया आई और उसने उस चिड़िया क बच्चे की खूब सेवा की और उसको स्वस्थ करके वापस गगन में उड़ा दिया। इस परोपकार और सद्भावना के प्रभाव से उसके पुण्य में वृद्धि हुई और उसका व्यापार चल पड़ा। उनके घर में एकाएक सम्पन्नता आ गयी।
छोटी बहू को उनकी सम्पन्नता देख कर ईर्ष्या हुई और उसने अपने पति से कहा, “सुनो जी, एक बात बताओ। तुम्हारे भाई का व्यवसाय एकाएक इतनी तरक्की पर कैसे पहुँच गया? जिस घर में कल तक दो जून की रोटी के भी लाले पड़े थे, आज उनके यहाँ पुए-पकवान कैसे बनने लगे?
छोटे भाई को भी इसका रहस्य समझ में नहीं आ रहा था, इसलिए उसने भी अपनी पत्नी की बात पर सहमती जताई और कहा, हाँ, बात तो तुम्हारी सही है। मैं कल ही जा कर बड़े भैय्या से पूछता हूँ कि यह चमत्कार कैसे हुआ?”
अगले दिन वह सुबह-सुबह अपने भाई की दुकान पर पहुंचा और बातों ही बातों में पूछ बैठा, “भैय्या, इधर कुछ दिनों से अचानक आपके व्यवसाय में इतनी वृद्धि कैसे हो गयी? क्या कोई टोना-टोटका किया है?” बड़ा भाई सीधा-सादा था, उसने भोले मन से बता दिया कि किस प्रकार उसने एक छोटे से चिड़िया के बच्चे कि सेवा की और उसी परोपकार का पुण्य फल प्राप्त किया। बड़े भाई से ऐसी बात सुन कर छोटे भाई ने तय किया कि वह भी चिड़िया के बच्चे कि सेवा करेगा और अपने धन को दुगना-चौगुना कर लेगा।
यही बात उसने अपनी पत्नी को जा कर बताई और दोनों पति-पत्नी चिड़िया क बच्चे की राह देखने लगे। कई दिन बीत गये लेकिन कोई चिड़िया का बच्चा नहीं आया। छोटे भाई ने एक तरकीब लगाई और एक घोंसला बना दिया। अब उसके छज्जे पर एक चिड़िया अपने परिवार के साथ अकार बस गयी। फिर से दोनों पति-पत्नी उसके बच्चों में से एक के ज़मीन पर गिरने का इंतज़ार करने लगे। छोटा भाई बेसब्री आते-जाते उन चूजों को देखता और सोचता कि ‘कब यह गिरे और कब मैं इसकी सेवा करूँ!’
बहुत दिन बीतने पर भी जब ऐसा कुछ नहीं हुआ तब उसकी पत्नी ने गुस्से में अकार घोंसला तोड़ डाला और सब चूजों को नीचे गिरा दिया। फिर क्या था, उसके पति ने लपक कर सब चूजों को उठा कर उनकी सेवा-सुश्रुषा शुरू कर दी। जब वे चिड़िया के बच्चे स्वस्थ हो कर उड़ गये, तब दोनों पति-पत्नी प्रसन्न होकर अपने घर धन बरसने की प्रतीक्षा करने लगे। लेकिन उनकी इस दुष्टता के कारण, उनके पुण्य कम हो गये और उनके घर की समृद्धि चली गयी। छोटी बहू का मन खट्टा हो गया और उसने पूरा दुखड़ा अपनी जेठानी को कह सुनाया। उसकी जेठानी मन ही मन हंसी और उसको प्यार से समझाया, “छोटी, जीवन में कुछ प्राप्त करने की अपेक्षा से जो परोपकार किया जाता है, वह परोपकार नहीं होता और उसका कोई पुण्य फल नहीं मिलता। परोपकार वह होता है जो सहज भाव से किसी की सेवा करने के उद्देश्य से किया जाए। और तो और यह ज़रूरी नहीं के जिस परोपकार का फल आपके पड़ोसी को मिला हो, वही आपके लिए भी फलित होगा। चिड़िया के बच्चे की सेवा के चक्कर में तुमने उनका घर तो नष्ट किया ही, साथ ही साथ तुमने अपने आस-पास किसी की मदद करने या सेवा करने के मौके को भी गँवा दिया।”
बड़ी बहू की बातें सुनकर छोटी बहू को अपने किये पर पश्चाताप हुआ। उसने अपनी जेठानी से क्षमा मांगी और उसी की तरह निर्मल मन से परोपकार करने लगी, जिसके फलस्वरूप उनका जीवन सुखी और समृद्ध हो गया।