आज सुबह-सुबह मच्छरों का एक ‘डेलीगेशन’ मिलने आया। शास्त्रीय संगीत पर उनकी पकड़ काबिले तारीफ़ थी। कल संगीत-संध्या पर भी शायद इन्हीं का कार्यक्रम था। मानव जाति से इनका जन्मों-जन्मों का नाता है। पर आजकल लोकतंत्र में अपनी उपेक्षा से खिन्न हैं। जबसे कोरोना आया है, सरकार ने मच्छर समुदाय पर ध्यान देना कम कर दिया है। उनका नेता बड़ा रोष में था, बोला–
–माना कि हम मच्छर हैं। पर इसका मतलब हमें मामूली हस्ती न समझ लेना! इसी गफ़लत में हर साल लाखों लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं। हमारा वज़ूद इंसानों के करीब दस करोड़ साल पहले से है। कदाचित् इसीलिये पुराणों में हमारा कोई उल्लेख नहीं है। सब हमारे सामने ही तो लिक्खे गये। सबकी असलियत पता है हमें।
शास्त्र लिखने वाले ऋषि-मुनियों की भी खूब “सेवा-सांसत” की हमने। ताकि जीवन में दुःख की उनकी अनुभूति कायम रह सके; और वो पथभ्रष्ट न होने पायें।मानव सभ्यता के विकास में हमारा महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज भी अध्ययनरत विद्यार्थियों का हम विशेष ख्याल रखते हैं। युधिष्ठिर के लिये विश्व का सबसे बड़ा आश्चर्य यह था कि लोगबाग रोज सबको मरते देखकर भी अपनी मौत का ख़याल नहीं करते। पर हमारे लिये सबसे बड़ा सवाल है– कि उस युग में, जब ओडोमॉस भी न था, इतने बड़े-बड़े योगी-तपस्वी कैसे हो लिये! और अब नहीं होते।
अब हम गली-कूचों में गुनगुनाते हैं। वहां ‘म्युनिसिपैलिटी’ की ओर से हमारे लिये ख़ास इंतेज़ाम रहता है। बेचारे हमारी ख़ातिर गालियां सुनते हैं। ऊपरवाला उन्हें बरकत दे। वरना तो अपना हर सीजन ही खाली निकल जाये। पर आजकल ये लोग भी कोरोना को लेकर कुछ ज्यादा ही ‘सैंटी’ हो रहे हैं। शायद इन्हें नहीं मालूम कि कोरोना की आड़ में अपना काम और भी आसान हो गया है।
कोरोना को भी अंदाज़ा नहीं है कि वह अभी बच्चा है हमारे सामने। एक मच्छर के सामने टिकने की औकात नहीं है उसकी। उसने अभी छः लाख मारे हैं, और हम हर साल आठ लाख से ज्यादा मार देते हैं। इंसानों ने हमारे साथ रहना सीख लिया है; और तुम्हारे ‘प्रस्ताव’ पर अभी विचार चल रहा है। पर देखना, तुम्हें वैक्सीन देकर टरका दिया जायेगा, और दुनिया में मच्छरों का अखंड साम्राज्य एक बार फिर कायम होगा।
और यह कोरी कल्पना नहीं है, हमने इस दिशा में काफ़ी प्रगति कर ली है। यदि हमारी समस्याओं पर ध्यान न दिया गया, और हमारी ऐसी ही अनदेखी चलती रही, तो जल्द ही हम अगली चढ़ाई करेंगे.