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चींटी और चिड़िया

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शयाम बड़ा  आलसी  लड़का था । आलस के कारण  वह न तो ठीक  से पढ़ता  -लिखता  था और  न ही किसी काम   में  मेहनत  करके उसे ठीक  ढंग से  कर पाता था।  ऊपर  से घर वालों  के समझाने  या डाँटने  पर नाराज  होकर  बैठ  जाता था । न अम्मा  से बात  करता था  और न ही दादी  माँ से। पिता जी और दादा जी  से जो भी चीज  वह  दिला देने को कहता वे  उसे दिला देते। पर वह था कि  फिर  भी संतुष्ट नहीं था। काम  कोई  करता  नहीं  ,हर समय  आलस दिखाता और सबसे  नाराज रहता । उसके  इस स्वभाव के कारण  सब घरवाले  दुःखी  थे। दादा -दादी  ,अम्मा  -पिता जी सब उसे समझाते पर वह कुछ  न समझता।


एक दिन  श्याम खेत में  जामुन  के  पेड़  की ठंडी  छाँव  में  खेल रहा था। उधर दादा जी कड़ी  धूप में  खरबूजे के खेत  में  बेलों  से पके -पके खरबूजे तोड़ कर  टोकरियों में  इकट्ठा कर रहे थे । श्याम से कुछ  दूर  पेड़ के नीचे  एक चींटी और चिड़िया  का  बच्चा  आपस में बातें कर रहे थे । श्याम  उनकी  बातें  ध्यान से सुन  रहा था।


“मेरी  माँ  कहती हैं  कि  सब काम  मेहनत से  करने  चाहिए । आलस  कभी  नहीं  करना  चाहिए । जो मेहनत  नहीं करता  उसे जीवन  में  कुछ  नहीं  मिलता ।इसलिए  मैं  सदा  मेहनत करता हूँ  और बहुत  खुश  रहता हूँ । मैं  अपने माता-पिता के  काम  में  हाथ बँटाता हूँ और उन्हें कभी  परेशान  नहीं करता ।

“चींटी के बच्चे ने कहा ।
” मेरी  माँ  ने तो मुझे  यही  सिखाया है कि  आलस  कभी  मत करो ,सुबह जल्दी  उठो और मेहनत  करके  जो मिले उसी में  खुश रहो ।बड़ों  के  साथ  घुल-मिल कर  रहो ,खुद  खुश रहो  और उन्हें  खुश  रखो।  जिद तो हम चिड़ियों  के  बच्चे  कभी  करते  ही नहीं हैं । ” चिड़िया के बच्चे  ने  कहा ।चींटी  का बच्चा बोला  -” हम चींटियाँ भले आकार में  बहुत  छोटी  हैं  पर मेहनत और मिलजुलकर  काम  करने  में  सबसे आगे हैं ।”


“हम चिडियाँ  भी  कम मेहनती नहीं,  कोसों  दूर  जाकर  दाना चुगकर लाती हैं  फिर  भी  मस्ती  में  नाचती-गाती  नज़र  आती हैं ।हमें  तो  जो मिल  जाए  उसी में  मस्त  रहती हैं ।” चिड़िया के बच्चे ने  सिना फुला कर कहा ।


 श्याम  ने उनकी  बातें  सुनकर  सोचने   लगा कि जब  ये छोटे -छोटे  जीव इतने  समझदार,  मेहनती  और अपने बड़ों  की दी सीख मानकर खुशी-खुशी उसका पालन  कर उन्हें  प्रसन्न  रख सकते हैं तो  भला  मैं  क्यों  नहीं  रख सकता?  मैं  तो  एक इंसान का बच्चा  हूँ  मुझे तो  इनसे  अधिक  समझदार  ,मेहनती और बड़ों  का आज्ञाकारी  होना चाहिए ।यही  सोचकर  वह तुरंत  उठा और खेत में  जाकर  दादा जी के साथ मिलकर  खरबूजे तोड़ने  के काम  में  लग गया । उस दिन के बाद  किसी   को भी  उससे  कोई  शिकायत नहीं  रही।

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