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आकाशीय बिजली का कहर..

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आकाशीय बिजली गिरने से यूपी-बिहार में सौ से अधिक लोगों की मौत खासा विचलित करने वाली है। इसने एकबार फिर से इस आपदा पर सोचने पर मज़बूर कर दिया है। देश में प्रतिवर्ष करीब दो हज़ार लोगों की मौत आकाशीय तड़ित के गिरने से हो जाती है।इसकी चपेट में वो लोग आते हैं जो खुले आसमान के नीचे, हरे पेड़ के नीचे होते हैं, पानी के करीब होते हैं या फिर बिजली और मोबाइल के टॉवर के नजदीक होते हैं।

हालाँकि हर बार आकाशीय बिजली जानलेवा नहीं साबित होती। अनुमानतः पूरी दुनिया में हर साल डेढ़ करोड़ से ज्यादा बार यह घटना घटित होती है। पर विकसित देशों में इसकी पूर्वचेतावनी की अच्छी व्यवस्था के चलते आकाशीय बिजली गिरने से होने वाली मौतें काफी कम हैं। अमेरिका में जहाँ प्रतिवर्ष औसतन तीस व्यक्तियों की मौत इसके चलते होती है, तो ब्रिटेन में सिर्फ़ तीन लोगों की। जो कि अन्य किसी भी प्राकृतिक आपदा में हताहतों का एक साधारण आंकड़ा ही है। लेकिन इससे यह बात साफ़ हो जाती है, कि आकाशीय बिजली के कहर से खुद को काफ़ी हद तक सुरक्षित रखा जा सकता है।

वायुमंडल में विद्युत आवेश का एक से दूसरी जगह स्थानांतरण ही आकाशीय बिजली कही जाती है। यह अक्सर घनकपासी मेघों में निर्मित होती है; जहाँ पवन की हजारों फीट ऊंची प्रबल ऊर्धवगत धाराओं के चलते बादलों में द्विध्रुवी विद्युत आवेश पैदा हो जाता है। ऊपरी भाग के बादल धनावेशित और नीचे के ऋणावेशित हो जाते हैं। और इस तरह निचले ऋणावेशित बादलों के प्रेरण के चलते धरती पर भी एक धनावेश सक्रिय हो जाता है, जो उन बादलों के साथ ही गतिशील भी रहता है। इस तरह पृथ्वी पर स्थित प्रत्येक चालक-अर्द्धचालक वस्तुयें भी निचले मेघों से प्रेरित इस धनात्मक आवेश के साये में आने पर आवेश से भर जाती हैं। स्वभावतः, इसकी चपेट में किसी व्यक्ति का आना अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है। एक अनुमान के मुताबिक विश्व में हर साल करीब पच्चीस हज़ार लोग ऐसी घातक घटनाओं के चलते अपनी जान से हाथ धो बैठते हैं।

इसीलिये आकाशीय बिजली से बचने के लिये विद्युत के सिद्धांतों के अनुसार ही कुछ सोचा जा सकता है। आकाशीय तड़ित पर महत्वपूर्ण शोध करने वाले सर बेंजामिन फ्रेंकलिन ने इससे बचाव हेतु एक तड़ित दंड(lighting rod) विकसित किया; जो नुकीले भाले के सदृश होता है, और भवन के पार्श्व में ही जमीन में काफ़ी अंदर तक धंसा होता है। यह आसमानी तड़ित को गिरते ही धरती के भीतर प्रवाहित कर देता है, और इस तरह वह भवन सुरक्षित रह जाता है। ज़ाहिर है कि आजकल धातुओं के प्रयोग से निर्मित गहरी नींव वाले मकान इस नज़रिये से काफ़ी मुफ़ीद होते हैं। जानकारों के मुताबिक ऐसा कोई अशुभ अंदेशा होने पर हमें धात्विक और विद्दुत-चालक वस्तुयें अपने हाथ में नहीं रखनी चाहिये, और किसी विस्तृत भवन में आश्रय लेना चाहिये। इसके साथ ही यह तथ्य ख़याल रखना भी ज़ुरूरी है कि एक ही स्थान पर कइयों बार भी बिजली गिरने की घटना सामान्य है; इसलिये ऐसी किसी घटना के बाद उससे लापरवाह हो जाना भी अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है।

यह भी देखा गया है कि बिजली गिरने की घटनायें अक्सर आंधी-पानी आकर निकल जाने के तीस मिनट के भीतर ही होती हैं, अतः पानी निकलते ही बाहर निकल जाने की आदत से भी इस परिप्रेक्ष्य में ख़तरा बढ़ जाता है, इससे बचें।बाहर रहनेवालों को पहाड़ियों के ऊपर, पुआल इत्यादि के ढेर पर, एकाकी वृक्षों के नीचे, पताकादंडों के पास, अथवा किसी प्रकार की धातुनिर्मित वस्तु के समीप, कभी न रहना चाहिए। ऐसे में पहाड़ों की कंदराओं में, घने वनों अथवा किसी ढालू पहाड़ी के नीचे रहना सर्वथा निरापद होता है।

कहना न होगा कि प्राकृतिक शक्तियों के समक्ष काफ़ी हद तक हम अब भी लाचार हैं, पर कुछ ज़ुरूरी एहतियात और सतर्कता का ध्यान रखकर इस आपदाजनित नुकसान को न्यूनतम किया जा सकता है, इसमें दो राय नहीं..

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