किसी समय की बात है, रामपुर नमक गांव में पंडित गोपी प्रसाद रहते थे।स्वभाव से वह काफी सरल और साफ दिल वाले थे।उनमें किसी भी प्रकार की बुराई नहीं थी। अपने और अपने आसपास के गांँव में पूजा – पाठ कर वो अपना जीवन यापन करते थें। एक दिन की बात है, पास के एक गांँव में गोपी पंडित पूजा कराने गए थे। जहां उन्हें दक्षिणा के रूप में गाय का एक बछड़ा मिला। उस बछड़े को पाकर पंडित जी काफी खुश थे। पूजा उपरांत ज्यों ही वे बछड़े को लेकर अपने गांँव की ओर बढ़ रहे थे कि तीन ठग की नजर पंडित जी और उनके बछड़े पर पड़ी। तीनों ने आपस में सोचा कि- क्यों ना पंडित जी से ये बछड़ा ठग लिया जाए और इसे महंगे दाम में किसी दूसरे व्यक्ति को बेच दिया जाए।जिससे कुछ दिनों तक हमारा जीवन मौज में बीते। ये सोचकर तीनों ठग कुछ-कुछ दूरी पर जाकर खड़े हो गए।
पंडित जी जैसे ही कुछ दूर आगे बढ़े, पहला ठग उन्हें टोकते हुए बोला – पंडित जी आप ये बकड़ी का बच्चा लेकर कहाँ जा रहे है? पंडित जी चुकी बछड़े को लेकर जा रहे थे, इसलिए उन्होंने गुस्से में झुलझुलाते हुए कहा – मूर्ख ये बकरी का नहीं गाय का बच्चा है। ठग ने इसके जवाब में कहा – क्षमा कीजिए मुझे, परन्तु मैं तो वहीं बोल रहा हूं जो मैं अपनी आंँखों से देख रहा हूं।
पंडित जी उसके बातों को दरकिनार करते हुए कुछ दूर ही आगे बढ़े थे की उन्हें दूसरा ठग मिल गया। दूसरे ठग ने उन्हें टोकते हुए बोला – आप देखने से तो काफी नेक इंसान लग रहे है परन्तु आप ये मरे हुए गधे को लेकर किधर जा रहे हैं? ये बातें सुनकर पंडित जी का गुस्सा तो जैसे अब सातवें आसमान पर चढ़ चुका था। पंडित जी ने गुस्से में कहा – अंधे, तुम एक ज़िंदा बछड़े को मरा हुआ गधा कैसे कह सकते हो? दूसरे ठग ने हाथ जोड़ते हुए कहा – जी मैं तो वहीं कह रहा हूं जो मैं अपनी आंँखों से देख रहा हूं। यह कहते हुए दूसरा ठग वहां से भाग गया। ये सब बातें सुनकर पंडित जी थोड़े घबराए हुए आगे बढ़े।
वे कुछ दूर आगे बढ़े ही थे कि उन्हें तीसरा ठग भी मिल गया। उसने पंडित जी से कहा – आप ये अपने साथ कुत्तों की फौज लेकर कहाँ जा रहे हैं? उसकी बातें सुनकर तो पंडित जी की घबराहट अब और भी बढ़ चुकी थी। उन्होंने मन ही मन सोचा कि क्या मेरे साथ यह जानवर सच में गाय का बछड़ा या ये कोई भूत प्रेत है।
बहुत सोचने के बाद वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि ये जानवर जरूर किसी प्रकार का भूत है तभी तो ये बछड़े से अचानक बकरी का रूप ले लेता है फिर अचानक से मृत गधे का रूप ले लेता है और गधे से अचानक कुत्ते का रूप ले लेता है। पंडित जी इन सब बातों से इतना डर गए कि उन्होंने बछड़े को ज्यों का त्यों छोड़कर नो दो ग्यारह होने का फैसला किया। पंडित जी के जाते ही तीनों ने बछड़े को पकड़ लिया। बछड़े को पाकर तीनों ठग काफी खुश थे। उन्होंने उसे बेचकर काफी सारा धन कमा लिया और कुछ दिनों तक उनका जीवन काफी मौज में बीता।
सीख – हमें जल्द किसी की भी बातों में नहीं आना चाहिए। हमें स्वयं पर विश्वास होना चाहिए वरना दूसरे कभी भी हमारा फायदा उठा सकते हैं।